प्रतिभास्थली, जैनाचार्य 108 विद्यासागरजी महाराज की असीम कृपा और दूरदृष्टि से पल्लवित पुष्पित व फलित भारत-भर में अनूठा व अद्वितीय कन्या आवासीय शिक्षण संस्थान है।
यह संस्थान आज के आधुनिक परिवेश में प्राचीन गुरुकुलों की स्मृति को पुनः जीवंत कर रहा है।
प्रतिभास्थली विद्यालय, संस्कारों के गवाक्ष से गुरुकुल पद्धति पर आधारित प्राचीन काल की संस्कृति, शिक्षा मंदिर, शील मंदिर, संस्कार मंदिर का एक अदभुत शिक्षण केंद्र हैं, जिसमें उत्थान की अनंत संभावनाओं के रहस्य उत्घाटित करने का “आवासीय शिक्षण संस्थान” हैं। जिसमें कन्याओ के उज्जवल भविष्य को साकार करने का अनूठा अद्वितीय प्रयास है।
प्रवेश प्रारंभ (2020-21), केवल कक्षा - 4 के लिए
12 जनवरी 2020 से, प्रवेश परीक्षा - प्रत्येक शनिवार एवं रविवार, प्रात: 11 बजे से शाम 4 बजे तक
प्रवेश प्रक्रिया ...
प्रतिभास्थली द्वारा, जिन्होंने अपने बलिदान से भारत भूमि को स्वतंत्र किया ऐसे वीर जवान शहीदों को, अटल बिहारी जी की कविता ‘उनको याद करे’ द्वारा सुन्दर प्रस्तुति टीकमगढ़ में ‘कोतवाली स्टेडियम’ पर आयोजित हुईं। जिसमें जिलाध्यक्ष, उच्च पदाधिकारीगण, जिले के सभी विद्यालय सम्मिलित हुए थे। देशप्रेम का अद्भुत नजारा, जो आँखों में चिरअंकित हो गया।
गुरुभक्ति एवं राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत अतिशयोत्सव के साथ राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस जो 70 वर्ष पूर्ण कर रहा है , वात्सल्यमूर्ति आर्यिका माँ आदर्श मति माताजी के पावन सानिध्य में मनाया गया। छात्राओं ने नृत्य, वक्तव्य, राष्ट्रगीतों से सैनिको को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए झंडावंदन आदि कार्यक्रम उत्साह से पूर्ण किये।
स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में संस्कृति संरक्षक प्रतिभास्थली में युवा दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। छात्राओ ने सूर्यनमस्कार एवं योगासन करके सभी के स्वस्थ तन की कामना की।
प्रतिभास्थली में खेल उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। जिसमें सभी छात्राओं ने आंतरिक एवं बाह्य खेल जैसे क्रिकेट, कबड्डी, खो-खो, शतरंज, कैरम, बैडमिंटन, 100 मीटर रेस, बोरा रेस, जलेबी रेस, नीबू चम्मच रेस आदि सभी प्रतियोगिताओं में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। जिससे छात्राओ में स्फूर्ति, बल आदि गुणों का विकास हुआ।
शिक्षा का कार्य व्यक्तित्व का संपूर्ण तथा सर्वांगीण विकास करना है। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, आध्यात्मिक आदि पहलुओं के विकास से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सकता हैं। इन पहलुओं के विकास के लिए ही पाठ्यसह्गामी क्रियाएँ शिक्षा का अनिवार्य एवं अभिन्न अंग है।